छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 12 किमी दक्षिण पश्चिम और भिलाई स्टील नगरी से 25 किमी पूर्व में स्थित है सांकरा नामक छोटा सा एक गांव। रायपुर से आते हुए खरून नदी व प्रसिद्ध महादेव घाट को पार करते हुए, यह गांव रायपुर पाटन मार्ग पर मात्र 2 से ३ हजार की आबादी वाला एक गांव है। दूर तक फैली लाल भूमि यहां की मृदा में लौह की उच्च मात्रा को बखूबी दर्शाती है। महत्वपूर्ण कस्बो व रायपुर से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़े हुआ ये गाँव शहरी विकास से अभी भी काफी दूर है। हालाँकि पंचायत ने अपने स्तर पर कुछ घरो में नलों से पानी की पहुंच व नालियों का निर्माण सुनिश्चित अवश्य किया है पर अभी भी पानी का मुख्य स्त्रोत यहाँ के छोटे छोटे तालाब व झीले है। प्रतिदिन सुबह शाम ग्रामीणों को इन तालाबों के किनारे समूह में दैनिक क्रियाकलाप करते देखा जा सकता है ।





बढ़ती आबादी के रहवास के लिए भूमि की बढ़ती आवश्यकता के चलते आज इन छोटे तालाबो व झीलों के चारो ओर अतिक्रमण बेहद आम बात है। सांकरा गांव में स्थित बांधा तालाब इसका जीता जागता उदाहरण है जहाँ छोटी झोंपड़िओ से लेकर पक्के मकान, पशु आवास एवं शौचालयों का निर्माण तालाब की जमीन पर किया जा चुका है। सरकारी जमीने बिना किसी कागजी कार्यवाही के पहले आओ पहले पाओ के आधार पर यहां व्यक्तिगत कब्जे में ली जा रही है। बढ़ते अतिक्रमणो के चलते इन महत्वपूर्ण जलाशयों का मूल क्षेत्रफल लगातार सिमटता जा रहा है। एक बार अतिक्रमण होने के बाद पुनर्विस्थापन तथा वास्तविक क्षेत्र की प्राप्ति करना बेहद मुश्किल तथा सरकार के लिए वित्तीय रूप से अव्यवाहरिक सिद्ध होती है।

दुर्ग जिला कलेक्टर के प्रशानिक सहयोग व इंडसइंड बैंक की वित्तीय सहायता से एन्वायरन्मेंटलिस्ट फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ने मार्च अप्रैल माह में बाँधा तालाब का पुनरुद्धार शुरू किया। तेज गर्मी के चलते तालाब में पानी की कम मात्रा के चलते मानसून पूर्व के ये महीने पुनरुद्धार कार्य के लिए बेहद उपयुक्त होते है और तालाब के तल तक पहुंच कर गाद की खुदाई भी संभव हो पाती है। दो चरण में संपन्न हुए इस कार्य में पहले चरण में तालाब के चारो तरफ बंध का निर्माण किया गया जिसके लिए उबड़ खाबड़ तल तथा किनारो से गाद की खुदाई की गई। 20 दिन चले प्रथम चरण की समाप्ति तक तालाब से पानी का स्तर और कम हो चुका था। द्वितीय चरण में कम हुए पानी से ऊपर आए तालाब तल से पुनः गाद की खुदाई करके द्वितीयक बंध का निर्माण किया गया। इस प्रकार तालाब के चारो ओर दोहरे बँधो का निर्माण किया गया। तालाब के उबड़ खाबड़ तल को खुदाई करके समतल किया गया व प्राप्त मिटटी से तालाब में ही स्वतंत्र टापुओं का निर्माण किया गया। चारो ओर पानी से घिरे ये टापू पक्षिओ व जलीय जीवो के लिए एक अबाधित आवास प्रदान करता है। वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही स्थानीय तथा प्रवसि पक्षियों को ये टापू आकर्षित करेंगे तथा स्थानीव जैव विविधता का विकास संभव हो सकेगा। बँधो पर पौधरोपण किया जाना भी प्रस्तावित है जो न सिर्फ मृदा को सुदृढ़ करेंगे बल्कि हरियाली बढ़ाने में सहायक सिद्ध होंगे।










वर्षा जल के तालाब में प्रवेश के लिए उपयुक्त व्यास वाले सीमेंट पाइप्स के प्रवेश पाइप्स की व्यवस्था बँधो के नीचे से किया गया ताकि पशु, वाहनों तथा जन जीवन की आवाजाही से पाइप्स की क्षति की सम्भावना को कम से कम किया जा सके। इसके पश्चात तालाब के चारो ओर स्टील प्रबलित सीमेंट स्तम्भों एवं चैन लिंक से लगभग 500 मीटर लम्बी बाड़ेबंदी का निर्माण किया गया ताकि पशुओ एवं लोगो की अनियंत्रित आवागमन को नियंत्रित किया जा सके। इससे न सिर्फ तालाब के बँधो की सुरक्षा होगी परन्तु तालाब की चारो ओर सफाई भी सुनिश्चित की जा सकेगी। यह तालाब ग्रामीणों के दैनिक क्रिया कलापो जैसे नहाने, कपडे धोने तथा पशुओ की जरूरतों के लिए पानी मुहैया करता है , इसी तथ्य को ध्यान में रखकर उचित अंतराल पर प्रवेश द्वार भी छोड़े गए है ताकि ग्रामीणों को तालाब का उपयोग करने में कोई परेशानी का सामना न करना पड़े।




पूरे पुनरुद्धार कार्य के दौरान संकरा गांव की पंचायत व ग्रामीणों का जरुरी सहयोग मिला तथा ग्रामीण भागीदारी, CSR सहयोग, NGO पहल के बहुआयामी प्रयासों से तालाब की बदली तस्वीर सामने आ सकी। वर्षा ऋतु के दौरान आने वाले पानी, पौधरोपण के बाद इस तालाब का पूर्ण बदला रूप देखने के लिए पुनरुद्धार में सम्मिलित सभी भागीदारों को बेसब्री से इंतज़ार है।



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