Restoring the Blue Jewel of Gurugram

भारत की मिललेनियम सिटी गुरुग्राम से मात्र 40 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित ऊँचा माजरा गांव का नाम इसके आसपास के गाँवो की तुलना में कुछ ऊँचा होने की वजह से पड़ा। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-8 , द्वारका एक्सप्रेसवे तथा वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे जैसे अत्यंत महतवपूर्ण राजमार्गो से घिरा तथा सुल्तानपुर पक्षी उद्यान से मात्र 30 किलोमीटर दूर बसा यह गांव- पटौदी नवाबो से लेकर वर्तमान 21 वीं सदी तक एक सम्पूर्ण कहानी अपने अंदर समेटे हुए है। आज गांव के किसान खेती में नए प्रयोग, उन्नत कृषि प्रणाली की और गतिशील है, नौनिहाल उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर है तथा आमजन का रहन सहन सभी मूलभूत भौतिक सुविधाओं से परिपूर्ण है। क्षेत्र में ऑटो निर्माता व रिअल-एस्टेट के उपक्रम मुख्यत रूप से फल फूल रहे हैं।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के इतने नजदीक होने व इस तीव्र औद्योगिक विकास के बावजूद भी यहां एक प्राकृतिक तालाब अपना अस्तित्व बरकरार रखे हुए है, जो गांव के ठीक मध्य से गुजरते बिलासपुर- पटौदी मार्ग पर स्थित है। हालाँकि बढ़ते घरेलू सीवेज, प्रदूषण तथा नज़रअंदाजी के चलते 2 एकड़ में फैला यह तालाब आज गाद और जलकुम्भी से अटा पड़ा है।  लगभग 5000 की जनसंख्या वाले गांव में रहन सहन के आधुनिक तरीकों का सामान्य असर यह हुआ है कि रीठा-शिकाकाई, मुल्तानी मिट्टी जैसे पारम्परिक उपभोगो का स्थान आधुनिक कॉस्मेटिक ब्रांड्स व डिटर्जेंट्स ने तो लिया ही है साथ ही प्रति व्यक्ति पानी की खपत भी बढ़ी है। खेती में बढ़ते उर्वरको की मात्रा, वायु में तैरते पार्टिकुलेट मैटर, बढ़ते निर्माण कार्यो के दुष्प्रभावों से यह तालाब भी अछूता नहीं रह पाया है।

सकारात्मक पहलू यह है कि स्थिति दयनीय जरूर है लेकिन अपरिवर्तनीय नहीं। यदि ठोस कचरे कि सफाई, जलकुम्भी का निष्कासन, गाद की खुदाई, बाड़ेबंदी, वृक्षारोपण व सामाजिक भागीदारी के साथ तालाब की दूरगामी सुरक्षा सुनिश्चित कि जाए तो न सिर्फ यह गांव के घरेलू सीवेज को संग्रह करेगा परन्तु जल का शोधन करने वाले पौधों तथा प्राकृतिक रूप से छनता हुआ पानी भूजल रिचार्ज में सहायक सिद्ध होगा,  तालाब के चारो ओर वृक्षारोपण वातावरण शुद्धिकरण के साथ पक्षियों को भी आकर्षित करेगा। जलीय जीवो, पौधों, पक्षियों तथा मित्र कीटो का यह संयोजन तालाब को जैव विविधता का एक छोटा सा हॉटस्पॉट बना सकता है जो कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बढ़ते डार्क जोन व प्रतिदिन प्रदूषण के नए स्तर छूने वाले वातावरण में एक आशा कि किरण साबित हो सकते हैं।  आवश्यकता है तो सिर्फ सकारात्मक सोच तथा सामुदायिक समन्वयता के साथ सही दिशा में कदम बढ़ाने की।    

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