गुजरात का मेहसाणा जिला चावड़ा साम्राज्य द्वारा 1414 में बसाया गया जो कि 1902 में गायकवाड़ शाही परिवार की राजधानी बना। आजादी के समय मेहसाणा बॉम्बे का हिस्सा था जो 1960 में गुजरात राज्य का एक जिला बना। 10 तालुको वाला यह जिला बहुआयामी भागीदारी की एक अनूठी मिसाल है जहाँ पशुपालको, प्रशासन एवं वितरकों ने आपसी भागीदारी से एशिया की सबसे बड़ी दुग्ध डेयरी स्थापित की है। जिले का दुग्ध उत्पादक संघ जो कि दूधसागर डेयरी के नाम से विख्यात है, रोजाना 14 लाख लीटर दूध का उत्पादन करता है। यह जिला अपनी मेहसानी नस्ल की दुधारू भैंसो के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
जिला मुख्यालय से लग़भग 7 किलोमीटर दूर फतेपुरा गाँव में स्थित तथा 12 एकड़ में फैली फतेपुरा झील का पुनरुद्धार भी कुछ ऐसी ही बहुआयामी भागीदारी की कहानी है जहाँ प्रशासन, ग्रामीण सहयोग, कोटक महिंद्रा बैंक की CSR सहायता तथा EFI के साझा प्रयासों से इस झील को एक नया रूप दिया गया है।
विदेशी बबूल की खरपतवार से जकड़ी हुई, बिना किसी बांधो तथा उबड़ खाबड़ तल वाली इस झील पर जुलाई 2022 में काम शुरू हुआ। सर्वप्रथम विदेशी बबूल की झाड़ियों को जड़ से उखाड़ कर दूर किया गया जो अन्य स्थानीय पेड़ो की प्रजातियों के विकास में बाधा होती है। तत्पश्चात झील के तल को समतल करते हुए अतिरिक्त मिटटी को झील की परिधि की और स्थानांतरित किया गया ताकि उसी मिटटी से तटबंधों का निर्माण किया जा सके।


मानसून की निकटता को देखते हुए सड़क मार्ग की तरफ से आते इनलेट चैम्बर को साफ़ किया गया जिसमे वर्षो से गाद, प्लास्टिक तथा अन्य कचरा जमा हुआ था। इसी इनलेट से लेकर एक नयी चैनल का निर्माण झील के केंद्र में स्थित एक पेड़ तक किया गया। इस चैनल के बीच बीच में 15 से 25 फ़ीट वाले अवसादी गड्ढो की भी खुदाई की गयी ताकि जल के साथ आती सिल्ट तथा अन्य अवसादी तत्वों को मुख्य झील के तल में जाने से रोका जा सके। केंद्र में स्थित इस पेड़ के चारो तरफ भी मिटटी इकठ्ठा करके एक द्वीप का रूप दिया गया जो पक्षियों एवं उभयचरों के लिए एक स्वतंत्र प्रजनन केंद्र का कार्य करेगा। इस प्रकार की जलराशियां विभिन्न प्रकार के प्रवासी और स्थानीय जीवो को आकर्षित करती है और उनके प्रजनन के लिए एक उपयुक्त स्थान मुहैया कराती है परन्तु झील व तालाबों के किनारे दिए गए अंडे प्राय मानवीय दखल के चलते या भक्षी जीवो जैसे कुत्ते बिल्लियों का शिकार बनते है। ऐसे में ये स्वतंत्र द्वीप प्रजनन दर को बढ़ावा देने में काफी सिद्ध सहायक होते है।


पुनरुद्धार के अंतिम चरण में झील के चारो तरफ लगभग 800 मीटर लम्बे एक तटबंध का निर्माण किया गया जिसकी औसत ऊंचाई जल के तल से 18 फ़ीट तथा चौड़ाई 8 से 15 फ़ीट तक रखी गयी। यह तटबंध न सिर्फ झील को एक हाइड्रोलॉजी सीमा प्रदान करेगा परन्तु ऊंचाई बढ़ने से जल भराव क्षमता में भी 30 से 35 प्रतिशत तक वृद्धि करने में सहायक होगा। साथ ही साथ झील के चारो तरफ तारबंदी का निर्माण झील को गन्दगी तथा अतिक्रमण की सम्भावनाओ से दूर रखते हुए नागरिको व पशुओ की सुरक्षा भी सुनिश्चित करेगा।



ग्रामीण भागीदारी को सुनिश्चित करने तथा पुनरुद्धार के प्रयासों को लम्बे समय तक सतत बनाने के लिए समय समय पर विभिन्न गतिविधिओ जैसे स्वछता अभियान, चित्रकारी आदि का आयोजन किया गया जिसमे ग्रामीणों व स्कूली विद्यार्थीओ ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।


साझा भागीदारी से पुनर्जीवित यह झील आज एक नए रूप में उभर कर सामने आयी है। विदेशी बबूल की कटाई व चौड़े तटबंध के निर्माण के चलते ग्रामीणों को एक नया व काम दूरी वाला मार्ग भी मिल पाया है जो कृषि में उपयोग के समय ट्रेक्टर व अन्य वाहनों के आवागमन में आसान तथा ईंधन की खपत को काम करने में सहायक होगा साथ ही अब यह झील विभिन्न जीवो, पौधों तथा कीटो को एक बेहतर जीवन प्रदान करने के लिए तैयार है। इसके आलावा यह वर्षा जल संचयन तथा भूजल स्तर को बढ़ाने में भी निश्चित रूप से सहायक साबित होगी ।
One thought on “फतेपुरा झील का पुनरुद्धार”